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नया साल

यूँ हंसते , गाते , रोते , मुस्कुराते ये साल गुजर गया कई अपनो को ले गया और कुछ खुशियाँ दे गया ....!! कुछ ख़ुशियाँ कुछ आँसू दे कर टाल गया  जीवन का इक और सुनहरा साल गया...  चलो बीते साल को कुछ इस कदर विदा करते हैं जो अब तक नहीं किया वो भी कर गुज़रते हैं..!! जाता साल सारे गम साथ ले जाए नया साल नई खुशियां लेकर आए... पूजा... 🖋🖋🖋 पहाड़न की डायरी से
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भारतवर्ष मे अंग्रेजी अनिवार्य क्यों..?

हिंदुस्तान मे हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी भाषा जरूरी मानी गई है स्वतन्त्रता के इतने वर्षों के  उपरांत भी हम अंग्रजी के गुलाम बने है।अलग अलग देशों में अपनी भाषा महत्व दिया है लेकिन आज भी भारत देश मे अंग्रेजी भाषा को क्यों महत्व दे रहे है दुनिया में एक ही देश ऐसा है जहां किसी भी देशी भाषा का प्रयोग वर्जित है। भारत में हो कर भी हम हिंदी में क्यों नही बात करते हैं अपने देश ही मे विदेशी भाषा क्यों बोलते है...  भारत मे कई सालों से भाषाई भेद है, अंग्रेजी बोलने वाला व्यक्ति राजा समझा जाता है और बाकी भाषा बोलने वाले प्रजा। अंग्रेजी भाषा को फैशन समझा जाता है कूल समझा जाता है आजकल के बच्चे हिंदी भाषा से लगभग दूर होते जा रहे है भारत को जहालत में डालने का काम सर्वाधिक इन अंग्रेजी भाषा स्कूल ने किया भारत मे बेकारी की समस्या इन्ही की देन...!! जापान चीन अंग्रेजी के बिना भी महान और भारत विदेशी भाषा के भरोसे महाशक्ति बनने का सपना नेहरू के समय से पाला हुआ है...!!! रूस, चीन, जर्मनी ,फ्रांस जापान जैसे देशों मे स्वभाषाओं की रक्षा के लिए बड़े आंदोलन चल पड़े है लेकिन भारत मे अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व इतन...

औरत का आत्मसम्मान

एक औरत हर किसी से प्यार बेहिसाब करती है… मां-बाप, भाई-बहन, मायके,  ससुराल हर किसी से  ... और उस प्यार के लिए अपने आप को भूल जाती है अपने आत्मसम्मान तक को छोड़ देती है हर समय अपनों का इंतज़ार करने को बेक़रार… आंखों में चिंता, लबों पर दुआ, आंचल में ममता और रिश्तों में वफ़ा… क्या ख़ुद को औरत होने की देती है सज़ा…? क्यों ...?? हर रिश्ते मे प्यार, वफ़ादारी, अपनापन रिश्तों में बेहद ज़रूरी हैं, लेकिन ये तमाम चीज़ें महिलाएं स़िर्फ अपनी ही ज़िम्मेदारियां व अपना धर्म समझकर निभाएं, यह सही नहीं. ख़ुद जीना छोड़कर दूसरों के लिए ही जीएं, यह सही नहीं… ख़ुद के बारे में सोचना छोड़कर बस अपने रिश्तों को ही जीएं, यह भी सही नहीं…  बहुतों का मानना है कि इसके पीछे का कारण दरअसल  औरत को  बचपन से उन्हें बस दूसरों का सम्मान, दूसरों के लिए त्याग, दूसरों के लिए समर्पण का पाठ पढ़ाया जाता है, जिसके चलते वे अपने बारे में सोचना तक ज़रूरी नहीं समझतीं और यहां तक कि इसे स्वार्थ की परिधि के अंतर्गत मानने लगती हैं....  सहमत हूं  लेकिन मेरा मानना इसके पीछे का कारण हमारा हमारे रिश्तों के लिए प्यार होता है....

गृहिणी की जिंदगी

परिवार को खुश करते करते जाने कब सुबह से रात हो जाती है पता ही नहीं चलता... सुबह चिड़िओं के उठने से पहले उठ जाओ और लग जाओ उन्ही कामों में... सुबह से शाम दौड़ते भागते हों जाती है .. न समय से खाना पीना न सोना ,, लेकिन हमे ये ख्याल हमेशा होता है कि सबकी जरूरतें समय पर पूरी कर सकें। किसी को स्कूल के लिए देरी हो रही होती है कोई आफिस,, हमें कोई जल्दी नहीं होती क्योंकि हमें तो घर पर ही रहना होता है हमारी जिंदगी का कोई उद्देश्य जो नहीं...!! बस आराम से घर पर पर पड़े रहो... और एक समय ऐसा आता है जब हमारा आत्मविश्वास हमारा साथ छोड़ देता है और हम जीने के लिए , खुश रहने के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं । जब हमें एहसास हो जाता है कि हमारी जिंदगी का कोई उद्देश्य नहीं जिंदगी बोझ लगने लगती है हमारी प्रतिभा हमारी खूबियां चारदीवारी में कैद हो जाती हैं कभी कभी सोचते हैं हमें भी तो यही एक ही जिंदगी मिली है अपने लिए कब जिएंगे ? पर हमारी वजह से किसी को बुरा न लगे ... बस जिंदगी इसी में निकल जाती है। जब हम सबकी जरूरत बने होते हैं सबको खुश रखते हैं तो खुशी होती है लेकिन हमारे सपने, हमारी ख्वाइशे...

भारतीय राजनीति किस मोड़ पर

भारतीय राजनीति किस मोड़ पर ? आज भारतीय राजनीति जिस मोड़ पर खड़ी है, उसमें इस सवाल का उत्तर तलाशना होगा कि राजनीति केवल दल हित के लिए है या इसका सरोकार राष्ट्रहित से है या नहीं? राजनीतिक धूर्तता का परिणाम जनजीवन और देश हित को प्रभावित कितना करेगा? आज की राजनीतिक परिस्थिति में केवल राजनीतिक कदम के लिए कई प्रकार के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। इस बात का भी किसी को ध्यान नहीं रहता कि उनके कारनामो से राष्ट्रहित कितना प्रभावित होता है और दुनिया में उनकी हरकतों का क्या प्रभाव होता है, राजनीतिक लक्ष्य राष्ट्र और समाज हित से परे हो जाता है तो फिर राजनीति देश के लिए संकट का कारण भी बन सकती है। राष्ट्र और समाज हित के नाम के राजनीति को किसी एक बिन्दु पर लिखने की अपेक्षा रहती है। राजनीति का भी धर्म राष्ट्र के लिए होता है। यदि नेतृत्व राष्ट्रहित को भी राजनीति की बलि चढ़ाने के लिए तत्पर होता है या राष्ट्रहित को राजनीति से विलोपित कर देता है तो ऐसी राजनीति राष्ट्र के लिए संकट का कारण बन जाती है। गांधीजी ने भी कहा था कि बिना धर्म के राजनीति वैश्या के समान, क्या हम उसी ओर जा रहे है? एक प्रधानमंत्री प...

मायका याद आ रहा है ..

परिवार की जरूरतें पूरी करते उनको खुश रखते हम खुद को कब भूल जाते हैं  सुबह से कब शाम हो जाती है हमे भी पता ही नही चलता। आज अकेले बैठे है तो मायका बहुत याद आ रहा है वो मम्मी की डांट पापा की देखभाल दादू अम्मा का दुलार बहन भाई की नोकझोंक बहुत याद आ रहा है कुंभकर्ण की नींद सोने वाले हम कब अर्लाम की घड़ी से पहले जिम्मेदारियां जगा देती हैं सबका ख्याल रखती भागती दौड़ती सुबह मे जब ठंडी हो चुकी चाय हाथ मे होती है तो मायके वाली वो गर्मागर्म चाय याद आती है मायके मे पहली रोटी खाने वाले हम अब सबको खाना खिलाने के बाद जब अकेले खाना खाने बैठते तो सब लोग बहुत याद आते है। कभी खाने का मन करता है कभी नही। घर मे जब छींक भी आती थी तो पूरा परिवार सेवा में लग जाता था अब बीमार होते है तो पहले परिवार की सेवा करो फिर खुद की खुद ही देखभाल मे लगो। अपनी छोटी छोटी इच्छाओं को भूलकर जब ससुराल के नियमों पर चलते है तब मम्मी पापा का वो हर बात मे मन पूछना याद आता है । ससुराल मे किसी के डांटने पर अपनी आंखो की नमी छुपाती हूं तो दादू का वो हर काम की तारीफ करना बहुत याद आता है। दिन की भागदौड़ के बाद थके जब आरा...

प्यार

प्यार क्या है .. ?? हमारी नजर मे प्यार एक एहसास है, भावना है। जो कब किस से हो जाए कोई नही जानता। बस आंखो से आंखे मिली और कौन कब दिल के करीब आ गया कोई नहीं जानता। प्यार किया नही जाता बस हो जाता है , प्रेम किसी भी उम्र मे हो सकता है प्रेम परंपराएँ तोड़ता है। प्यार त्याग व समरसता का नाम है। प्रेम की अभिव्यक्ति सबसे पहले आँखों से होती है और फिर होंठ हाले दिल बयाँ करते हैं। और सबसे मज़ेदार बात यह होती है कि आपको प्यार कब, कैसे और कहाँ हो जाएगा आप खुद भी नहीं जान पाते। वो पहली नजर में भी हो सकता है और हो सकता है कि कई मुलाकातें भी आपके दिल में किसी के प्रति प्यार न जगा सकें। प्रेम तीन स्तरों में प्रेमी के जीवन में आता है। चाहत, वासना और आसक्ति के रूप में। इन तीनों को पा लेना प्रेम को पूरी तरह से पा लेना है। इसके अलावा प्रेम से जुड़ी कुछ और बातें प्रेम का दार्शनिक पक्ष- प्रेम पनपता है तो अहंकार टूटता है। अहंकार टूटने से सत्य का जन्म होता है। यह स्थिति तो बहुत ऊपर की है, यदि हम प्रेम में श्रद्धा मिला लें तो प्रेम भक्ति बन जाता है, जो लोक-परलोक दोनों के लिए ही कल्याणकारी है। इसलिए गृहस...