परिवार को खुश करते करते जाने कब सुबह से रात हो जाती है पता ही नहीं चलता...
सुबह चिड़िओं के उठने से पहले उठ जाओ और लग जाओ उन्ही कामों में... सुबह से शाम दौड़ते भागते हों जाती है .. न समय से खाना पीना न सोना ,, लेकिन हमे ये ख्याल हमेशा होता है कि सबकी जरूरतें समय पर पूरी कर सकें।
किसी को स्कूल के लिए देरी हो रही होती है कोई आफिस,, हमें कोई जल्दी नहीं होती क्योंकि हमें तो घर पर ही रहना होता है हमारी जिंदगी का कोई उद्देश्य जो नहीं...!! बस आराम से घर पर पर पड़े रहो... और एक समय ऐसा आता है जब हमारा आत्मविश्वास हमारा साथ छोड़ देता है और हम जीने के लिए , खुश रहने के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं ।
जब हमें एहसास हो जाता है कि हमारी जिंदगी का कोई उद्देश्य नहीं जिंदगी बोझ लगने लगती है हमारी प्रतिभा हमारी खूबियां चारदीवारी में कैद हो जाती हैं कभी कभी सोचते हैं हमें भी तो यही एक ही जिंदगी मिली है अपने लिए कब जिएंगे ? पर हमारी वजह से किसी को बुरा न लगे ... बस जिंदगी इसी में निकल जाती है।
जब हम सबकी जरूरत बने होते हैं सबको खुश रखते हैं तो खुशी होती है
लेकिन हमारे सपने, हमारी ख्वाइशें, हमारे अरमान परिवार और जिम्मेदारियों के तले दब जाते हैं दुख बहुत होता है।
ये कहानी एक या दो की नहीं है बहुत सारे ऐसे होंगे जो जिम्मेदारियों को पूरा करते अपने ख्वाइशें भूला देते हैं...
जब रात को थक कर बिस्तर पर बैठते है तो सोचते है कि यही जिंदगी है..??
क्या यही जिंदगी है??
जीवन संघर्ष है, हलचल है, निरंतरता है, यायावरी है,कर्मयोग है। विश्राम, शांति और ठहराव बेमानी शब्द है।
ReplyDeleteक्या बात है
ReplyDeleteएक सुंदर आत्मचिंतन . . .🙏
ReplyDeleteबहन जी, हम पहाड़ो के लिये तड़फते है, क्या आप भी ऐसा महसूस करते है कि खुले मैदानों में घूमने जाय
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