एक औरत हर किसी से प्यार बेहिसाब करती है… मां-बाप, भाई-बहन, मायके, ससुराल हर किसी से ... और उस प्यार के लिए अपने आप को भूल जाती है अपने आत्मसम्मान तक को छोड़ देती है
हर समय अपनों का इंतज़ार करने को बेक़रार… आंखों में चिंता, लबों पर दुआ, आंचल में ममता और रिश्तों में वफ़ा… क्या ख़ुद को औरत होने की देती है सज़ा…?
क्यों ...??
हर रिश्ते मे प्यार, वफ़ादारी, अपनापन रिश्तों में बेहद ज़रूरी हैं, लेकिन ये तमाम चीज़ें महिलाएं स़िर्फ अपनी ही ज़िम्मेदारियां व अपना धर्म समझकर निभाएं, यह सही नहीं. ख़ुद जीना छोड़कर दूसरों के लिए ही जीएं, यह सही नहीं… ख़ुद के बारे में सोचना छोड़कर बस अपने रिश्तों को ही जीएं, यह भी सही नहीं…
बहुतों का मानना है कि इसके पीछे का कारण दरअसल औरत को बचपन से उन्हें बस दूसरों का सम्मान, दूसरों के लिए त्याग, दूसरों के लिए समर्पण का पाठ पढ़ाया जाता है, जिसके चलते वे अपने बारे में सोचना तक ज़रूरी नहीं समझतीं और यहां तक कि इसे स्वार्थ की परिधि के अंतर्गत मानने लगती हैं....
सहमत हूं लेकिन मेरा मानना इसके पीछे का कारण हमारा हमारे रिश्तों के लिए प्यार होता है... हम अपने रिश्ते खोना नही चाहते इसलिए हम उन रिश्तो को बचाने के लिए अपने आप को भूल जाते है
हमारे समाज में महिलाओं को आत्मसम्मान के महत्व के बारे में समझाना ही ज़रूरी नहीं समझा जाता है
यदि हम अपने से ज्यादा दूसरों की परवाह करते है तो हम अच्छी बेटी और अच्छी बहु बनते है..... और अपनी पसंद को तवज्जो देते हुए कोई काम कर लें तो हम स्वार्थी बन जाते है
यही कारण है कि हमारा आत्मसम्मान भी स्वार्थ नज़र आता है और हम चाहकर भी बहुत-से क़दम नहीं उठा पाती..!!
किसी भी रिश्ते में एकतरफ़ा प्यार या एकतरफ़ा ज़िम्मेदारी संभव नहीं है...
अगर कोई औरत अपना प्यार अपना रिश्ता बचाना चाहती है तो वो स्वार्थी कैसे हो सकती है अगर अपने लिए आवाज उठाती तो वो बुरी कैसे बन जाती है ..?
आत्मसम्मान खोकर जीना मरने से कम नही होता .. सबकी समझ मे शायद न आए पर बहुतों की समझ मे आएगा.. किसी को इतना भी न तोड़ें कि वो जिंदा लाश ही बन जाए..!!
हमारा सामाजिक ढांचा महिलाओं को स्वतंत्र रूप में स्वीकार करने की हिम्मत नहीं रखता. उनकी स्वतंत्रता, उनका अपने तरी़के से जीने का ढंग किसी को भी मंज़ूर नहीं. उन्हें हमेशा परिवार की इज़्ज़त, घर की लक्ष्मी, खानदान की इज़्ज़त जैसे भारी-भरकम शब्दों के बोझ तले अपने शौक़, अपने जीने का सलीक़ा, अपनी पूरी ज़िंदगी ही दफन करनी पड़ती है.
अब तो हमे लगता है कि अपने लिए स्वार्थी होना कोई बुरी बात नही है अपने आप को खुश रखना कैसे बुरा हो सकता है .. खुद खुश रहेंगे तो औरों को भी खुश रखेंगे.. और रिश्ता दोनो तरफ से होता है और निभाने की जिम्मेदारी भी दोनो तरफ से होनी चाहिए.. !!
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