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मायका याद आ रहा है ..

परिवार की जरूरतें पूरी करते उनको खुश रखते हम खुद को कब भूल जाते हैं  सुबह से कब शाम हो जाती है हमे भी पता ही नही चलता।


आज अकेले बैठे है तो मायका बहुत याद आ रहा है वो मम्मी की डांट पापा की देखभाल दादू अम्मा का दुलार बहन भाई की नोकझोंक बहुत याद आ रहा है

कुंभकर्ण की नींद सोने वाले हम कब अर्लाम की घड़ी से पहले जिम्मेदारियां जगा देती हैं सबका ख्याल रखती भागती दौड़ती सुबह मे जब ठंडी हो चुकी चाय हाथ मे होती है तो मायके वाली वो गर्मागर्म चाय याद आती है

मायके मे पहली रोटी खाने वाले हम अब सबको खाना खिलाने के बाद जब अकेले खाना खाने बैठते तो सब लोग बहुत याद आते है। कभी खाने का मन करता है कभी नही।
घर मे जब छींक भी आती थी तो पूरा परिवार सेवा में लग जाता था अब बीमार होते है तो पहले परिवार की सेवा करो फिर खुद की खुद ही देखभाल मे लगो।

अपनी छोटी छोटी इच्छाओं को भूलकर जब ससुराल के नियमों पर चलते है तब मम्मी पापा का वो हर बात मे मन पूछना याद आता है । ससुराल मे किसी के डांटने पर अपनी आंखो की नमी छुपाती हूं तो दादू का वो हर काम की तारीफ करना बहुत याद आता है।

दिन की भागदौड़ के बाद थके जब आराम करने जाते है तो दादू की गोदी मे सर रखके सोना और दादू का हमारे बालों मे गर्म तेल से मालिक करना याद आता है

एक बात तो सच है शादी के बाद ससुराल में सब कुछ मिल जाए पर वो अपनेपन का अहसास नही मिल पाता जो हम लोग पीछे छोड़ आए हैं।  मायके की वो खुशनुमा यादें हमेशा साथ रहती है ।


पूजा


पहाड़न की डायरी से 🖊🖋🖋🖋





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